कल की बात है-
जब हम पीछे छोडकर आये-
गिल्ली डन्डे, गेन्द, कबड्डी,
धूप-छाव, पकडा-पाटी।
निश्छल हंसी, निश्छल प्रेम और
निराले खेल्।
किसका डण्डा, किसकी गिल्ली,
किसकी गेन्द और किसका घर
सब कुछ अपना होता था।
आज-
आज सपना भी अपना नहीं है।
आंखें हमारी देखती है
सपने दूसरे के होते हैं।
अधिकार जताने वाले-
अधिकार देने वाले दूसरे।
अपनी खुशी के लिये जीना तो दूर
मरना भी मुश्किल होता है।
सर पर बोझ और
फ़ेहरिस्त जिम्मेदारी की-
पूरा किये बगैर
कैसे कोई मर सकता है
जीना ही पडता है।
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
5 months ago
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