...कुछ कवितायें

परिचय

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भोपाल, मध्य प्रदेश, India

4.11.06

जीना ही पडता है

कल की बात है-
जब हम पीछे छोडकर आये-
गिल्ली डन्डे, गेन्द, कबड्डी,
धूप-छाव, पकडा-पाटी।
निश्छल हंसी, निश्छल प्रेम और
निराले खेल्।

किसका डण्डा, किसकी गिल्ली,
किसकी गेन्द और किसका घर
सब कुछ अपना होता था।

आज-
आज सपना भी अपना नहीं है।

आंखें हमारी देखती है
सपने दूसरे के होते हैं।

अधिकार जताने वाले-
अधिकार देने वाले दूसरे।
अपनी खुशी के लिये जीना तो दूर
मरना भी मुश्किल होता है।

सर पर बोझ और
फ़ेहरिस्त जिम्मेदारी की-
पूरा किये बगैर
कैसे कोई मर सकता है
जीना ही पडता है।

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