जेठ का महिना
आग बरसाता सूरज
सूखी-तपती धरती
मृतप्राय नदियां
उजडे जंगल
पानी तलाशते प्राणी
हवा के रुख के साथ उडते-
पेडों से झडे पत्ते
अपनी जीवन यात्रा के अन्तिम पडाव पर
आपस में बतियाते-
खर्र-खर्र-
बचपन से लेकर
अभी तक के अनुभव सुनाते।
खूशबू, कोमलता
और सुन्दरता देते-देते
सूखे-झरे-
पर टूटे नहीं।
आज भी
तत्पर
पदचाप पर बोलते-
कोई हमारे लायक सेवा?
जलाने पर
आग और धुंआ
और दफनाने पर
धरती को उर्वरा देते
पेड से पतझड तक
देते ही देते।
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
1 year ago
No comments:
Post a Comment