...कुछ कवितायें

परिचय

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भोपाल, मध्य प्रदेश, India

30.5.07

झाडू

खजूर के कांटों भरे पत्ते
अरहर या घास
कचरा होने जैसे
अंश से बनी झाडू

कचरा साफ़ करते-करते
अन्त में कचरे में
विलीन हो जाती
और दे जाती संकेत
अपने होने का
अपने सार्थक जीवन का।

अपना आकार पाने पर
उन घरों को देती
दो-जून रोटी
जो बनाते झाडू।

घर-घर पहुंच
साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य
और सुन्दरता देती झाडू।

अडियल कचरा
जो घर के बाहर जाने का नाम न ले
और छुप जाये दरवाजे के कोनों में
उसे मनाने
छोड जाती अपना एक तिनका
और दूसरे दिन समेटकर
ले जाती झाडू।

महल से झोपडी
और मंदिर से मस्जिद तक
एक-सी काम आती झाडू।

लक्ष्मी पूजा में
पूजी जाती
धन-व्रद्धि करती झाडू।

कचरे से बनी
कचरा हटाती
और कचरे में ही
विलीन हो जाती झाडू।

झाडू-
कचरे का वह अंश है
जो अपने अंशी में
विलीन होने तक
अपने अंश के साथ
हर रोज
मेल-मिलाप रखती
और बिदा भी
उसी के साथ होती।

झाडू-
संस्क्रति है जीवन की
देती है संदेश जीने का
इसलिए-
झाडू और झाडू लिये हाथ
तिरस्कार के नहीं
सम्मान के हकदार है।
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1 comment:

Udan Tashtari said...

अच्छा दर्शन और संदेश है रचना में.

--आजकल कुछ कम लिख रहे हैं?? कहाँ हैं जनाब?

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