मुझे पता ही नहीं चला
तुमने मेरी कविता में
प्रवेश कर लिया।
फ़िर कैसे नहीं-
विषयान्तर होता।
देखने के बाद
हमेशा की तरह
सोचता रहा-
पहले दिन से आज तक्।
आज, से डर लगने लगा
कल, लुभावना निडर था
वह कब हाथ छोड
दूर कहीं चला गया
पता ही नहीं चला।
मै कल से लडा था
आज से लड रहा हूं
आगे भी लडूंगा
तुमसे हिम्मत है मुझ में।
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
1 year ago
3 comments:
अच्छा है. स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठा जगत में. लिखते रहें.
-समीर लाल
स्वागत है.लिखें और नियमित.
स्वागत है आपका. चाह है आगे भी ऐसी ही सुंदर कविताये पढने को मिलती रहें.
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