...कुछ कवितायें

परिचय

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भोपाल, मध्य प्रदेश, India

20.11.06

दर्द का रिश्ता

मुखियाजी
जिनकी सब मानते-
वे बड़े थे
लेकिन कम पढे थे
केवल अनुभव की डिग्री थी
उनके पास्।
जिनसे लगी रहती थी
सभी को आस्।
एक दिन मोहल्ले के बच्चों ने
शरारत में किये
उल्टे-सीधे सवाल।
उनके हो गये
बुरे हाल।
बच्चे प्रश्न पूछते रहे
वे जवाब देते रहे
अपनी मुखियागिरी की
हिफ़ाज़त करते रहे।

एक बच्चा बोला-
बताओ दद्दू
रिश्ते, दर्द से कि
रिश्ते से दर्द ?
दद्दू बोले बेटा-
जब तुम पैदा हुए-
तुम्हारी मां ने
बहुत पीडा सही
तो यह तो हुआ
दर्द का रिश्ता
अब तुम बड़े हो गये
मां-बाप को
यदि तुमसे
पहुंचे कोई कष्ट
तो यह हुआ रिश्ते का दर्द।

फ़िर भी
मेरी बात समझ लो
दर्द में रिश्ता और
रिश्ते में ही
दर्द छुपा हुआ है।

संसार में
बिना दर्द रिश्ता पोषित नहीं होता
और बिना रिश्ते के
दर्द नहीं होता।
दर्द रिश्ते की खुशी का प्रतीक है
और दर्द न हो तो
सुख की अनुभूति नहीं होती।
इसीलिए ये दोनों
हर घर में साथ-साथ रहते हैं।
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4 comments:

संजय बेंगाणी said...

भई वाह, बहुत खुब, क्या कमाल की रिश्तेदारी है रिश्ते में और दर्द में.

Prabhakar Pandey said...

बहुत बढ़िया रचना । अति सुंदर ।

Udan Tashtari said...

रचना का दार्शनिक पहलू और प्रस्तुतिकरण बहुत खुबसूरत है, बधाई.

Reetesh Gupta said...

क्या बात है । बहुत सुंदर ।

रीतेश गुप्ता

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